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Wednesday, September 28, 2011

दुनिया को हँसाया जाए

वक़्त !  मोहलत किसे खबर दे न दे फिर कल,
 आज हँस लें ज़रा  दुनिया  को हंसाया जाए / 
दर्द-ए -दिल, ले ले गम-ए-जिन्दगी जो गीत ग़ज़ल,
 बस तरन्नुम में वही यार सुनाया जाए /

गैर के काम भी आयें  कभी पुरखों की तरह ,
 जोश-ओ-जज्बा नहीं सूरत नज़र नहीं आती ,   
सबको हासिल  हों जिसके पत्ते बूटे,  फूल- ओ- फल,
 दरख़्त ऐसा सायादार लगाया जाए   / 

खाक ! मतलब की कहाँ रह गयी तालीम कोई ,
 पढ़ के भी सिख ईसाई हिन्दू मुसलमां हैं हम ,
धर्म-  मजहब से जुदा आदमी की पनपे नसल ,
 वो मदरसा !  कभी कोई तो  बनाया जाए  /

वहशतों का ये दौर और न आगे आये ,
 कोई दंगा - फसाद,  खून-  खराबा  न बढे , 
ऐसे हैरत भरे मंजर न मिलें और भी कल ,
 आदमीयत का जनाजा न उठाया जाए  /

ऐसी तहजीब है अजीब , नाम दें भी क्या ,
 साए भी,  हाथ में साए पे उठाये खंजर ,
क्या यकीं कब हो साँस आख़िरी न पाए टल,
खुद कफ़न अपना ज़रा सी लें तो जाया जाए /

अब हैं बेमानी मुहब्बत की,  प्यार की बातें ,
 नफरतों का वो सिलसिला नहीं रुका दम भर , 
कल कोई दिल से दिल मिलाये ये खुदा का फज़ल ,
 जो मिले आज गले सबको लगाया जाए /






Tuesday, September 27, 2011

हम तुम्हारे गाँव

यह रचना मेरे सुकवि बन्धु राम मोहन शुक्ल "सजल" का सृजन है , आप सभी के  स्नेहाशीष की अपेक्षा में -------


हम तुम्हारे गाँव , आयेंगे कभी फिर ,
आज मन की साँझ, गहराने लगी  /   
वेदना विचलित , मिलन की आस के पल,
प्यास मन का दोष ठहराने लगी  /
 हम तुम्हारे गाँव ---------------

पूछते हो हाल, सब कुछ ठीक है ,
मुक्त मन पर वेदना की लीक है  /
पाहुने प्रतिबन्ध के घर आ टिके ,
बांसुरी की साध , घबराने लगी  /
 हम तुम्हारे गाँव----------------

क्या कहा ? हम रास्ते से हट गए ,
दरअसल कुछ लोग हमसे कट गए /
बन गए हैं ईद का हम चाँद तो क्या ,
घर  तुम्हारे -  पूर्णिमा आने लगी  /
 हम तुम्हारे गाँव -----------------

बेबसी के गीत , अब भी बेचता हूँ ,
नियति के फुटपाथ का असली पता हूँ /
हो सके तो भेज देना एक पाती  ,
इस पते पर रात भरमाने लगी  /
 हम तुम्हारे गाँव आयेंगे कभी फिर ,
आज मन की साँझ गहराने लगी /  

                         -   राम मोहन शुक्ल "सजल"


   


Sunday, September 25, 2011

राजनीति के रावण

वेद पुराणों में जननी की, जन्मभूमि की कीर्ति बखानी / 
आजादी की अज़ब कहानी , कहतीं प्यारी दादी-नानी /

वहशी तुर्कों ने लूटा धन- कंचन , धर्म-कर्म चोरों ने ,
व्यापारी बन हिंद देश को , फिर लूटा पापी गोरों ने  /

अलख जगाकर तब स्वराज की , खूब लड़ी झांसी की रानी /
आजादी की अज़ब कहानी , कहतीं प्यारी दादी-नानी /

नेताजी, आज़ाद, भगत, बिस्मिल, सावरकर की गाथाएँ ,
इस धरती पर लाल लुटाती आयीं, हँस -हँस कर मातायें /

मैं तुमको आज़ादी दूँगा , खून मुझे दो हिन्दोस्तानी  ,
आजादी की अज़ब कहानी , कहतीं प्यारी दादी-नानी /

तुर्कों , गोरों ,चोर- लुटेरों से बढ़कर भारत के काले ,
परदेशी भर रहे खजाने, काले मुख करते घोटाले  /

खून पी रहे , अब ये नेता , बलिदानों की आन न जानी /
आजादी की अज़ब कहानी , कहतीं प्यारी दादी-नानी /

चरखा ! चला , बनाकर खादी , बापू जो लाये आज़ादी ,
खादीधारी , टोपी  वालों  ने  भारत में  आग  लगा दी  /

सत्ताधारी  दशाननों  ने , सत्य भुला दी वह कुर्बानी /
आजादी की अज़ब कहानी , कहतीं प्यारी दादी-नानी /

राजनीति के रावण देखो , लगा रहे ज़न्नत में सीढ़ी ,
खूनी क्रान्ति , करेगी आज़ादी की , आने वाली पीढ़ी /

बलिदानी गाथाएँ , आज़ादी की -होंगी मात्र निशानी  /

आजादी की अज़ब कहानी , कहतीं प्यारी दादी-नानी /










Wednesday, September 21, 2011

वंशी को दे न ताने

वंशी को  दे  न  ताने ,  मृदुरागिनी  है वंशी  /
क्यों बांस वन का माने, सुरवादिनी है , वंशी  

परदेश से  न आयी , वृज में गयी बनायी ,
बींधी  गयी  है  पहले , पीछे  गयी बजायी , 
पीड़ा न कोई जाने , स्वर स्वामिनी है वंशी /
वंशी को  दे  न  ताने ,  मृदुरागिनी  है वंशी  /


धुन सुन के  बत्स- गैया , सँग  नाचता  कन्हैया 
मधुवन सुमन भी झूमें , तरु करते ता- ता थैया 
स्वर ऐसे मृदु सुहाने , अनुगामिनी है वंशी  /
वंशी को  दे  न  ताने ,  मृदुरागिनी  है वंशी  /


वृज रज घरों में वंशी , नारी नरों में वंशी 
अधरों के तट लिपट कर , बजती सुरों में वंशी 
दे श्याम धुन बजाने , सहवासिनी है  वंशी /
 वंशी को  दे  न  ताने ,  मृदुरागिनी  है वंशी  /



Wednesday, September 14, 2011

वन्दन करते हम भाषा का

वन्दन  करते  हम  भाषा  का  ,  माथे   दे  रोली  हिन्दी की  /
अपनी  संस्कृति की स्वर गंगा , जन भाषा बोली  हिन्दी की  /
वन्दन  करते हम भाषा का -------------------------------1

 दासी न रही दरबारों  की,  गलियों  कूचों  की  पटरानी ,
हर परदेशी  चाहे , हिन्दी आये, हम कर लें  , अगवानी  ,
पानी-  पानी हो , हर भाषा ,हिन्दी सम्मुख भरती पानी ,
हिन्दी से जन्मा,हिन्दी , हिन्दी , हिन्दी हर हिंदुस्थानी ,

हिन्दी सा धन जब हाथों में, क्यों मुँह ताकें किस भाषा का ?,
ले लूट न कोई टूट- टूट , फिर    अपनी   डोली  हिन्दी   की  /
वन्दन  करते हम भाषा का ------------------------------१

पर धन !क्यों देखें टुकुर - टुकुर अंजलि में अपनी रत्नाकर ,
दिनकर  का तेज, बिहारी की,  गागर ही में जब हो सागर  ,
हिन्दी  की  मूर्ति  महादेवी , हिन्दी  का दृष्टा ,  नर  नागर  ,
ममतामय प्यार दुलार भरा इस हिन्दी का आखर आखर ,

यह तुलसी का  नैवेद्य मधुर,  रसखान सूर का तुतलापन ,
भारती! प्रसाद  प्रमाद भरा,  मत करो ठिठोली हिन्दी की  /
वन्दन  करते हम भाषा  का  ---------------------------1
जगनिक की जगमग ज्योति जले, दे ओज! चन्द का छन्द- छन्द,
अधरों   पर , राग कबीर भरे, आनन्  ! पर  उमड़े,  ,    घनानन्द !
हर अंग, , निराला   भूषण   है , व्यंजन - व्यंजन     आनंदकंद  ,
अपनी  भाषा  की  मुट्ठी में, हर रस का,  अभिनव  कोष  बन्द  ,

माथे  पर बिंदी ,  भारतेन्दु ,  ऊपर  से  कड़वी   लगे  नीम - 
तल  में,  रहीम रस झीम- झीम , रत्नों की झोली हिन्दी  की  /
   
विज्ञानमयी  भाषा स्वरलिपि , यह नहीं, व्यर्थ की काँव-काँव  ,
अंगुली थामे इस भाषा की, हम ,  चले प्रगति पथ,  पाँव -पाँव  ,
इतनी मधुरा सुगम्य सुफला , सुखदायी   इसकी छाँव  -छाँव ,
किसको  अभिमान नहीं, कविता , कावेरी  बहती,  गाँव -गाँव  ,

उत्तर -दक्षिण  पूरब  पश्चिम  जगती  तल का कोना -कोना -
हिन्दी को चाहे गूँज        रही , हर घर में बोली  हिन्दी  की  / 

हिन्दी अपनी भारत भाषा , अपनी पहचान यही   हिन्दी , 
हिन्दी भारत का यश गौरव , गरिमा का गान यही हिन्दी ,
तम से नव ज्योतिर्मय पथ पर अभिनव सोपान यही हिन्दी,
हर मजहब से निर्बन्ध  बड़ी , आरती   अजान  यही  हिन्दी ,

विद्यालय की आधारशिला  ,यह न्यायालय की सुगम  रीति -
उर्दू  भी सौतन  नहीं  वरन  भगिनी  मुँहबोली   हिन्दी  की   /
वन्दन   करते    हम   भाषा    का  ------------------------//


Tuesday, September 13, 2011

हिन्दी हमारी माँ

वषों मनाते हैं रहे , स्वाधीन हम , हिन्दी दिवस  ! 
वैषम्य,कैसा रात दिन होती रही , हिन्दी विवश  !

वह आंग्लभाषा आवरण , हम त्याग भी पाए  कहाँ ?
हिन्दी रही वक्तव्य में , उठ जाग भी पाए कहाँ ?

चौपाइयों की सोरठों , दोहों की छप्पय , छंद की /
लालित्य निधि खोती रही रस भाव के आनंद की /

जुटती रही लुटती रही , भाषा की हर विश्वास निधि /
होती रही वलिदान दिन - दिन स्वार्थ पंथ विकास निधि /

रस का सुयश पल पल विवश , सच नित्य रत्नाकर लुटा /
हिंदी रही लुटती सदा , हिन्दी का हर आखर लुटा /

हिन्दी नहीं लुटती रही , लुटते रहे हैं  आप  हम ,
क्या सत्य अंगरेजी   में हम  गायेंगे  वन्दे  मातरम्  /

हम चन्द वरदायी बनें ,  कवि राष्ट्र रखवाले रहें  /
भूषण , निराला  वेश हो,दिनकर   सुयश पाले रहें /

हिन्दी हमारी आन भारत शान रस की संहिता  ,                                                              
अब भी रहे सोते जलेगी राष्ट्रभाषा की चिता  /

हिन्दी!हमारी माँ!कहो,माँ जैसा प्यारा कौन है ?
हिन्दी की,ऐसी दुर्दशा पर,राष्ट्र  सारा  मौन है  /

हो युद्ध , हिन्दी ! भारती के भाल की बिंदी रहे /
निष्प्राण जब तक हम न हों , सच प्राणप्रिय हिन्दी रहे  /

सच दीन सी  पथ देखती , जल , मीन सी माँ भारती /
हिन्दी  पुरोधा कब करें , हिन्दी में भाषा  आरती //

Saturday, September 10, 2011

मुक्तक मंजरी - 2

वहशी  हुए ,  बढ़े  बड़े   नागों  के  हौसले ,
अब पस्त करें ,  दहशती रागों के हौसले /
तूफानों ! तबाही के, हकीकत ये जान लो ,
टूटेंगे  नहीं , जलते  चिरागों  के  हौसले  /

दहशत , का कौन फिर  गया बारूद बिछाके ,
वहशी ने रख दिया ये वतन फिर से हिलाके ,
ये खेल खेलते  हैं  जो भी आग के छुपकर -
वे  नरपिशाच ! करते  कराते  हैं  धमाके  /


वहशी -  दरिंदों के ,  कलेजे फाड़ दें - उठें ,
अब  वक्त  आया ,  बाघ से दहाड़  दें - उठें
नफ़रत की आग घर में लगाते जो सिरफिरे
करते  जो छाती पर , तिरंगा गाड़ दें - उठें

बम के जवाब    में उठें जागें कहें,  बम- बम
सब मिलके देखें देशद्रोहियों में कितना दम
चल जंग हो , दहशत से पुकारे  ये  तिरंगा
जय हिंद ! जय हे  भारत,  जय  वन्दे मातरम्

एक विकल्प  एक  संकल्प  कायाकल्प  के लिए इतना और
--------------------------------------------------------

कर्ज़ ! माता मात्रभूमि का , चुकाना ठान  लें /
लूटना क्या ,  राष्ट्र पर जीवन लुटाना ठान लें /
पाँव तो आगे बढायें ,स्वार्थ पल भर भूल कर ,
फिर तिरंगा ! हाथ में मन से उठाना ठान लें /

Thursday, September 8, 2011

वत्स ! नेता , भारत में भगवान है , /

विनती सुन प्रकट हुए भगवान् 
वत्स माँग मनचाहा वरदान 
वत्स अल्पायु में कठिन तपस्या 
बोल क्या है समस्या ?
किंकर्तव्यविमूढ़ ! दयानिधान  !
समस्या ? हिन्दुस्तान - हुक्मरान /
घुट घुट जिन्दगी जीते इनसान,
राज करते ये काले , काली करतूतों वाले ,
काली चालों , करोड़ों घोटालों वाले ,
सोना चाँदी उगलती संसद में-
 अंगद जैसे जमाये पाँव 
वर्षों से केवल कौओं सी कांव-कांव ,
मौज - मस्ती में कुम्भकर्णी खर्राटे  मार रहे हैं नींद में ,
 आम आदमी ! बेमौत मर रहा है ,दीवाली होली कभी ईद में
हर ओर आग ही आग , दिन - रात खूनी फाग ,
नारायण - नारायण , नारी -नर जैसे भाजी -साग ,
 और तरक्की भी ऐसी ,असली जामे में नकली नोट ,
हुक्मरानों की नयी नयी गोट ,
सब पर  मर्मबेधी चोट ,
दे रहे अवर्णनीय विस्फोट !
नाथ ! ये आतंक ,ये दंगे ,
मर रहे भूंखे प्यासे नंगे ,
फिर भी जज्बा-ओ -जोश में ,
आक्रोश में लहराते हैं  तिरंगे ,
प्रभो ! आज़ादी में गुलामी के मंजर ,
 अपनों पर अपनों के खंजर , 
आम आदमी अस्थि पंजर ,
धरती हो रही बंजर ,
अन्तर्यामी ! यह कैसा खेल तमाशा है ?
आदमी, आदमी के खून का प्यासा है /
अपनी विख्यात पौराणिक मुद्रा में मुस्कुराए भगवान् 
उठ जाग ! नादान ,
यह आज़ाद राजनीति की रक्काशा है ,
वत्स राजनीति  राज  नीति है-
जिसमें राष्ट्र -राष्ट्रभक्ति दूध - बताशा है ,
वत्स वैसे तो सभी को हमने स्वयं गढ़ा -तराशा है /
परन्तु  नेता  की काया में फ़र्क ज़रा सा है /
नरों -नारियों की यह छवि है ऐसी विराट ,
अपनी पर आये , सच खड़ी कर दे नारायण की भी  खाट ,
जय हो प्रभो ! खुल गए बंद चक्षु  ज्ञान  कपाट /
फिर भी एक सवाल मचा रहा है धमाल
किसी ब्लास्ट , फास्ट में -
 कभी कोई राजनीतिज्ञ नहीं मरा ,क्या खूब है कमाल /
जगदीश्वर ! कहें कारण 
वत्स, इस शंका का है निवारण 
नेता !दंगाइयों , आतंकवादियों का बाप है ,
वत्स , नेता पर उंगली उठाना महापाप है /
सच्चा जनार्दन जनता का आका है ,
भोले भक्त ,शहर - शहर -
 नेता के बल पर ही  विस्फोट  हैं , धमाका है /
वत्स , नेता वतन की आँख का नूर -ए- चश्म  है ,
दशानन ,कंस ,का सदियों  पुराना  जीवाश्म है /
नेता के प्रारब्ध में स्वप्रवाहित  अमरता है ,
नेता के आगे नारायण भी पानी भरता  है ,
वत्स ! सच्चाई कहते अंतर्मन डरता है ,
 भाग्य ही रूठा हो तो और बात है -
वरना  किसी भी विस्फोट में नेता नहीं मरता है /
वत्स ! नेता , भारत में भगवान है , /
एक अकेला नेता ही समूचा हिन्दुस्तान है
सुनते ही भक्त की आँखों से झरने लगा निर्झर  ,     
अवसर उचित देख अंतर्ध्यान हुए जगदीश्वर /
भक्त के नयन खुले ,भयभीत था रोम - रोम
हतप्रभ , नयन मूँद भजने लगा हरि ॐ  हरि ॐ हरि ॐ .'

Wednesday, September 7, 2011

-बन जाऊँगा-

तुम ! संवरती रहीं  बेखबर  सारा  दिन ,
 लट कसम , सुरमई शाम बन जाऊँगा /
आँखों में ,  यूँ  ही  सागर छलकते  रहे,
 मयकशी  की कसम,जाम बन जाऊँगा  /
सारी   दीवानगी  की  , हदें - सरहदें   -
 बंदिशें तोड़कर,जान- ए- मन एक दिन -
राम बन जाऊँगा, तुम हो सीता अगर ,
राधिका हो प्रिये  , श्याम बन जाऊँगा //


Sunday, September 4, 2011

बज उठे रण के नगाड़े ------

वर्ग सब आधे- अधूरे , छेड़ बैठे तानपूरे 
अब न भ्रष्टाचार धुन पर, नाचेंगे बनकर जमूरे 
लूटने देंगे न, भारत देश , धन अब दिन- दहाड़े 
गूंजते विद्रोह के स्वर ,बज उठे रण के नगाड़े /

देख लो ! जनतंत्र जागा , खुल गयीं अब बंद आँखें 
अब निरंकुश शासकों के, घर की टूटेंगी सलाखें 
देखना ये भूखे- प्यासे , तोड़ देंगे घर- किवाड़े 
बज उठे रण के नगाड़े ------

नष्ट कर डाला हिमालय , कर रहे दूषित ये गंगा 
धन के भूखे धूर्त , रख दें मत कहीं गिरवी तिरंगा 
सर्प डसते, और ओझा बिच्छुओं का जहर झाड़े /
बज उठे रण के नगाड़े ------

बहुत भरमाया वतन को , और भरमाना न आगे 
पाप कर, पापी किसी को, और ठहराना न आगे
वरना ! संसद से सड़क तक , ताल ठोकेंगे अखाड़े /
बज उठे रण के नगाड़े ------

अपनी कथनी- करनी का, हर दंड खुद भरना पड़ेगा
पाप सब, स्वीकार करना भी, स्वतः मरना पड़ेगा
अब लताड़ा यदि  वृथा , जन- गण भुला देगा पहाड़े /
बज उठे रण के नगाड़े ------

राह पर आओ , समय है , सच सुनो - ओ बेशरम 
जागरण ! जन - गण उठा ध्वज- यन्त्र वन्दे मातरम 
याद रखना ! अब करोड़ों लोग अपना लक्ष्य ताड़े  /
बज उठे रण के नगाड़े ------

सत्य यह भी, युद्ध अपनों से - नहीं जाता लड़ा 
किन्तु कोई देश, धरती माँ से कब होता बड़ा ?
मूर्ख ! जो स्तम्भ यश के, राष्ट्र के खुद ही उखाड़े /
बज उठे रण के नगाड़े ,बज उठे रण के नगाड़े   /