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Saturday, June 15, 2013

अब समय उठें जागें --- मिलकर ------------

वहशी होवें जब अंधियारे
युद्ध झूँठ से सच जब हारे
अपना हो कोई दुत्कारे
बजा जंग के बस नक्कारे
बीता बिसार , गीता सी रण सर्जना करें मिलकर ।
अब समय उठें जागें , केहरि गर्जना करें मिलकर ।
रखवाले बहुत अँधेरों के , रोशनी नहीं आने देंगे,
सपनों के शत्रु लुटेरे घर तक खुशी नहीं आने देंगे,
पापी से प्यार , पाप की पर , भर्त्सना करें मिलकर ।
प्यासी आँखों ने भी देखा , धरती से मिलता नीलगगन,
ठिठुरते नगन तन मिले बहुत , देखे कितने तन जड़े नगन,
प्रभु ! दें समृद्धि , शक्ति सबको , प्रार्थना करें मिलकर ।
नर - नारायण अवतार , इसलिए नर हो जाते नारायण,
कथनी - करनी में रहे भेद , बस काम कथा का पारायण
दुष्कर्मों की , दुश्शासन की , वर्जना करें मिलकर ।
अब  समय , उठें जागें , केहरि गर्जना करें मिलकर ।।

Thursday, June 13, 2013

विष्णु ! तुम्हारी गन्दी गंगा

विष्णु कैसे क्षीरसागर बीच तुम सोते रहे ?
विष बना गंगा के जल को पाप हम धोते रहे।
धवल जल को मल बनाते और करते आचमन ।
हम भगीरथ ऐसे गंगा में भी जौ बोते रहे ।।
कैसे अत्याचार,भगिनी पर सहे,माँ लक्ष्मी ,
दो नयन गंगा के बहते रात दिन रोते रहे ।
दूर मैलापन हो धन सब स्वच्छता अभियान का,
हम हजम करते गए , नारे जवाँ होते रहे ।
भाँवरों में , गीत यश के , काँवरो में जो बसे ,
मैली माँ गंगा वो ,उड़ते हाथ से तोते रहे ।।
गंगा माँ , पर लाज माँ की भी बचा पाए कहाँ ?
माँ के हत्यारे हैं , न्यारे , हम , समय  खोते रहे।।