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Friday, February 14, 2014

एक रुपिये में तिरंगा वन्दे मातरम् *******

वायदों का राग देखो
दिलासों का बाग देखो
दिल के गहरे दाग़ देखो
दिल में जलती आग देखो
योजनाओं का खजाना लूट का सामान ले लो ।
वाकई अनमोल है बिन मोल हिन्दुस्तान ले लो ।।

बेसुरे हर राग की हम तान ले निकले सुरीली ,
पश्चिमी कल्चर ने ऐसे संस्कृति पूरब की लीली ,
विद्युती रफ्तार मँहगायी चले इतनी हठीली ,
टूट कर सर पर गिरी भगवान् की छतरी भी नीली आये बेईमान लुटता रात दिन ईमान ले लो 9९0उ6।

इतनी मैली कर रहे हम खो रही पहचान गंगा ,
जी रहा हर एक अपने देश भूँखा और नंगा ,
झोलियाँ भरती मुरादें पा रहीं आतंक दंगा ,
सच कहीं हे राम गिरवीं हो नहीं जाए तिरंगा
चीनओ पाकिस्तान से सहमा हुआ इन्सान लेलो

चलती फिरती राह में दूकान रस परचून की
परचमो के ढेर में भी खेप कत्थे चून की
दिल दहलजाएबहल फुलझड़ी जोशओजूनून की
लत नशेबाजी की करती धार पतली खून की
एक रुपये में तिरंगा वन्देमातरम गान ले लो  ।।

खून पूरे जूनून से होती यहाँ अब ईद होली
लुट रही आजाद दुलहिन लाडली दिन रात भोली
हक़ की हर आवाज पर नाहक जहां बारूद गोली खो गयी बहती हवा में लाज की चूनरी चोली
ढांप कर भी अंगदिखते कलियुगीपरिधान लेलो ।

दहशतों के दौर ने इस तौर सुख आनन्द लूटा 
बागबानों ने गुलओगुलशन से रस मकरन्द लूटा
ऐसी आज़ादी से अमन ओ चैन का तटबन्ध लूटा आज उत्तेजक नशीले गीत ने हर छन्द लूटा
दो टेक में सूर तुलसी जायसी रसखान ले लो

व्यर्थ शिक्षा गुरु निरर्थक गुरुहैन नेता गुरु घोटाले
दूधिया पोशाक वाले लूटते मुख से निवाले
सत्यअब लीडरअधिकतरविषधरोंसेअधिककाले
हम नजर पर डाल परद ही रहे हैं इनको पाले
ये हैं धरती के विधाता राष्ट्र के भगवान् ले लो ।

शहर सुलगें गरीबी में पल रहे हैं गाँव भी
वहशियाना मंजरों में प्यार की इक छाँव भी
पैंतरे हर जुल्म के और राजनैतिक दाँव भी
लो हुनर जीने के लाखों झूंठ के सौ पाँव भी
कौड़ियों से भी है सस्ती आदमी की जान ले लो ।

Thursday, January 30, 2014

आ ही गया +++

आज आखिर करार आ ही गया  ।
बाखुदा खुद से प्यार आ ही गया  ।
रात दिन जिस ख़याल में गुजरे
साया बाहों में यार आ ही गया     ।

ऐसे बेज़ार हुईं साँसें भी
जिस्म में लो बुखार आ ही गया   ।
दिल ही दिल में जो की दुआ दिल से
दर्द ए दिल बेशुमार आ ही गया   ।
हुस्न जैसे गुलाब जान ए ग़ज़ल
मेरी किस्मत में ख़ार आ ही गया  ।
ज़िन्दगी में भी और की खातिर
जीना करना निसार आ ही गया   ।
चाहा जितना भी दिल की दिल में रहे
प्यार बन इश्तिहार आ ही गया     ।
मरती हर वक़्त जो रही मुझ पर
रूह को भी दुलार आ ही गया    ।
लाख चाहा न नाम हो लब पर
जाने क्यों बार बार आ ही गया    ।
मुन्तज़िर खुद भी मुन्तजर तेरा
करना अब इन्तजार आ ही गया   ।।

विकास पथ पर निरन्तर गतिमान * अन्नपूर्णा सेवा संस्थान


वन्दे वाणी विनायकौ * सेवा लक्ष्य परम * वन्दे मातरम् ।।
वर्ष 2014ई .में अन्नपूर्णा साहित्य संगम सीतापुर के प्रथम वार्षिकोत्सव अवसर पर साहित्य अनुरागी  प्रेरक जन का
सतत अभिनन्दन ।वर्ष 1993ई.में पूजनीया माता श्रीमती आशा देवी -पूज्यपिता श्री शंभू दयाल द्विवेदी जी के शुभाशीष की छाँव में पाँव पाँव सफलता सोपान चढ़ते विश्व पटल पर
उपलब्धियों के शिखर से कुछ कदम दूर , अन्नपूर्णा सेवा संस्थान की साहित्यिक सेवा
भावना का सुफल ,अन्नपूर्णा साहित्य संगम के
दूसरे वर्ष के द्वार पर पधारने ,आपके उत्साहवर्धन के
लिए संस्थान-संगम मन कर्म वचन से आभारी है संस्थान द्वारा जनपद,प्रदेश, के ही नहीं वरन उत्तराँचल के भी विद्यार्थियों को वर्षपर्यन्त सम्पन्न करायी जाने
वाली प्रतियोगिताओं में अलंकृत व पुरस्कृत
किया जाता रहा है ।प्रतिवर्ष प्राथमिक स्तर से महाविद्यालाय स्तर के 15से 20हज़ार विद्यार्थी
प्रतिभागी होते हैं । सांस्कृतिक , शैक्षिक एवं
क्रीड़ा की लगभग 135 प्रतियोगिताओं के वर्ष 2013 की प्रतियोगिताओं के पुरस्कार बितरण
सत्र , अन्नपूर्णा सेवा संस्थान के वार्षिकोत्सव
में दिनाँक 16.02.2014, 02 .03.2014 एवं -23 .03.2014ई. को आप सहृदयता पूर्वक पधार कर अनुग्रहीत करें ,संस्थान उत्साहवर्धन
के लिए सदैव आभारी रहेगा ।
संस्थान के आगामी उपक्रमों में चिकित्सा , विधि तथा वृक्षारोपण के हित में विशेष कार्य
योजना समेत एक शोध पुस्तकालय के शुभारम्भ के लिए प्रयत्नशील अन्नपूर्णा सेवा संस्थान -
अन्नपूर्णा साहित्य संगम द्वारा समायोजित दो दिवसीय साहित्यिक उत्सव एवं सायं6बजे से
कवि संगम की रसधारा में रस पान हेतु सादर
आमंत्रित करते हुए संस्थान गौरवान्वित हो रहा है आप सभी का ह्रदय से वन्दन अभिनन्दन ।
जय हिन्द वन्दे मातरम्

सदैव प्रगतिशील रहे सेवा अभियान ।
सहयोग के लिए कृतज्ञ अन्नपूर्णा सेवा संस्थान ।

Thursday, January 16, 2014

तनिक

तनिक बन ठन कर आओ पास ।
तनिक बन ठन कर आओ पास ।
विरह विदग्ध नयन उपवन घर
मुखरित हो मधुमास ।।   तनिक---
  शीतल मन्द पवन के झोंके
शुष्क कर रहे तट अधरों के ।
तपन रच रही तन तन तन पर
प्रणय गीत आठों पहरों के  ।।
अधर अधर पर दहक उठें प्रिय -
खिलते हुए  पलाश  ।। तनिक --
सज आये सन्ध्या सिन्दूरी
किलकारी भर रही मयूरी ।
कस्तूरी हो रही लालसा
आस मिलन की कब हो पूरी ।।
सम्भव नहीं अगर मर जाए -
प्यासी ही यह प्यास ।। तनिक ---
कहते बहते नीर चली आ ।
टेर रही यह पीर चली आ ।
लुट लुट घुट घुट जीते फिरते -
इस राँझे की हीर चली आ ।।
कर्म पन्थ पर रच दें मिल जुल
एक नया  इतिहास  ।।  तनिक---
गीत मिलन के गाये धड़कन ।
कब से प्रिये बुलाये धड़कन ?
पल दो पल क्षणभंगुर जीवन -
जाने कब थम जाए धड़कन ?
साँस साँस भर चलें चार पग -
सत्य सुखद सहवास  ।। तनिक -
आ साकार करें वे सपने ।
जिनको रहे लूटते अपने ।
लथ पथ नित्य अग्नि पथ चलते
अब जब पाँव लगे भी तपने ।।
यत्न करें चिर प्यास तृप्ति का -
पा  जाये  आकाश   ।। 
तनिक बन ठन कर आओ पास ।।।