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Wednesday, November 16, 2011

गली से गुजरे

वो  निगाहों में   लिए  जाम   गली से गुजरे /
हुस्नगर सज के सर-ए-शाम, गली से गुजरे /

ऐसे निकले , हो खिला झील में कमल जैसे ,
मस्त शायर  ने  कहीं  छेड़ दी  गजल जैसे ,
नीद ! रातों  में की  हराम , गली से गुजरे /
वो निगाहों में लिए जाम  ,  गली से गुजरे /

ख्वाब में यार ये अंगडाईयों के दौर तो हैं,
प्यासी बाहों में ये, परछाइयों के दौर तो हैं ,
रह गए यार ये दिल थाम,  गली से गुजरे /
वो  निगाहों में   लिए  जाम ,  गली से गुजरे /

दर्द दिल में नहीं कमतर भी कभी सपनों का ,
एक गम प्यार का शामिल है ये भी अपनों का ,
दर्द-ए - दिल , दे के वो तमाम, गली से गुजरे  /
वो  निगाहों में   लिए  जाम ,   गली से गुजरे /

यार बरसात में भीगी हुई लटों की कसम ,
रातों में आयें , सताएं जो  करवटों की कसम ,
नज़र से करते क़त्ल-ए - आम, गली से गुजरे /
वो  निगाहों में   लिए  जाम  ,  गली से गुजरे /

ऐसी हसरत से निगाहों की सरहदें देखीं,
लिपट के सायों से बाहों की सरहदें देखीं,
ऐसे कर देंगे वो बदनाम , गली से गुजरे /
वो  निगाहों में   लिए  जाम, गली से गुजरे /

2 comments:

अनुपमा पाठक said...

निगाहों की सरहदें...
सुन्दर विम्ब!

S.N SHUKLA said...

वो निगाहों में लिए जाम गली से गुजरे / हुस्नगर सज के सर-ए-शाम, गली से गुजरे /


सुन्दर रचना , बधाई.