वैरागी ! मन से बंजारे ,
आसमान से टूटे तारे ,
कह न सकें भी सूने ऐसे -
हुए , भरे भण्डार हमारे ,
जीना क्या घर के मधुवन के शूलों जैसे हैं !?
बहती सरिता की धारा के कूलों जैसे हैं !!
ऐसी रच ली राम कहानी ,
चार दिनों बस चली जवानी ,
सोन चिरैया उड़ गयी फुर से -
आन हो गयी पानी-पानी ,
उड़े , हाथ आ , तोते ! टूटे झूलों जैसे हैं !!
ये पश्चिमी हवा के झोंके ,
उड़ा ले गए बसन घरों के ,
नंगेपन की अंधी आंधी -
सुख लूटे सहमी लहरों के ,
तूफानों से तूलों में मस्तूलों जैसे हैं !!
सपने लुटते चोरी -चोरी ,
ऐसी बँधी प्रीति की डोरी ,
नींद हराम हो गयी फिर भी -
रात , सुनाती जाए लोरी ,
हम तुम भी डाली से बिछड़े फूलों जैसे हैं !!
जीना क्या घर के मधुवन के शूलों जैसे हैं !!
आसमान से टूटे तारे ,
कह न सकें भी सूने ऐसे -
हुए , भरे भण्डार हमारे ,
जीना क्या घर के मधुवन के शूलों जैसे हैं !?
बहती सरिता की धारा के कूलों जैसे हैं !!
ऐसी रच ली राम कहानी ,
चार दिनों बस चली जवानी ,
सोन चिरैया उड़ गयी फुर से -
आन हो गयी पानी-पानी ,
उड़े , हाथ आ , तोते ! टूटे झूलों जैसे हैं !!
ये पश्चिमी हवा के झोंके ,
उड़ा ले गए बसन घरों के ,
नंगेपन की अंधी आंधी -
सुख लूटे सहमी लहरों के ,
तूफानों से तूलों में मस्तूलों जैसे हैं !!
सपने लुटते चोरी -चोरी ,
ऐसी बँधी प्रीति की डोरी ,
नींद हराम हो गयी फिर भी -
रात , सुनाती जाए लोरी ,
हम तुम भी डाली से बिछड़े फूलों जैसे हैं !!
जीना क्या घर के मधुवन के शूलों जैसे हैं !!
2 comments:
'हम तुम भी डाली से बिछड़े फूलों जैसे हैं!!'
गहरी संवेदना जुड़ी है इस पंक्ति से!
सुन्दर स्रजन, ख़ूबसूरत भाव, शुभकामनाएं
रचना बहुत सुन्दर है, बधाई.
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