वहशी होवें जब अंधियारे
युद्ध झूँठ से सच जब हारे
अपना हो कोई दुत्कारे
बजा जंग के बस नक्कारे
बीता बिसार , गीता सी रण सर्जना करें मिलकर ।
अब समय उठें जागें , केहरि गर्जना करें मिलकर ।
रखवाले बहुत अँधेरों के , रोशनी नहीं आने देंगे,
सपनों के शत्रु लुटेरे घर तक खुशी नहीं आने देंगे,
पापी से प्यार , पाप की पर , भर्त्सना करें मिलकर ।
प्यासी आँखों ने भी देखा , धरती से मिलता नीलगगन,
ठिठुरते नगन तन मिले बहुत , देखे कितने तन जड़े नगन,
प्रभु ! दें समृद्धि , शक्ति सबको , प्रार्थना करें मिलकर ।
नर - नारायण अवतार , इसलिए नर हो जाते नारायण,
कथनी - करनी में रहे भेद , बस काम कथा का पारायण
दुष्कर्मों की , दुश्शासन की , वर्जना करें मिलकर ।
अब समय , उठें जागें , केहरि गर्जना करें मिलकर ।।
वृन्दावन ! आसवन भक्ति का , नवरस नस-नस मनभावन / वर दें आप, ताप मिट जाएँ , रस बरसे पग-पग पावन / व्यंजन-स्वर परसें मनभावन , नव रस का बरसे सावन / वंदन! वचन सुधा रस चाहे , प्रिय आओ इस वृन्दावन /
Saturday, June 15, 2013
अब समय उठें जागें --- मिलकर ------------
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