आज आखिर करार आ ही गया ।
बाखुदा खुद से प्यार आ ही गया ।
रात दिन जिस ख़याल में गुजरे
साया बाहों में यार आ ही गया ।
ऐसे बेज़ार हुईं साँसें भी
जिस्म में लो बुखार आ ही गया ।
दिल ही दिल में जो की दुआ दिल से
दर्द ए दिल बेशुमार आ ही गया ।
हुस्न जैसे गुलाब जान ए ग़ज़ल
मेरी किस्मत में ख़ार आ ही गया ।
ज़िन्दगी में भी और की खातिर
जीना करना निसार आ ही गया ।
चाहा जितना भी दिल की दिल में रहे
प्यार बन इश्तिहार आ ही गया ।
मरती हर वक़्त जो रही मुझ पर
रूह को भी दुलार आ ही गया ।
लाख चाहा न नाम हो लब पर
जाने क्यों बार बार आ ही गया ।
मुन्तज़िर खुद भी मुन्तजर तेरा
करना अब इन्तजार आ ही गया ।।
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