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Sunday, July 10, 2011

रत्नावली

विश्व वंचित ही रहता महाग्रंथ से
               कामिनी यदि नहीं होती रत्नावली.
लाल हुलसी का तुलसी न बनता कभी
               भामिनी यदि नहीं होती रत्नावली .
संत के कर्म के पंथ पर रहता तम
               दामिनी यदि नहीं होती रत्नावली .
पति को सदगति न मिलती कभी स्वप्न में,
               स्वामिनी यदि नहीं होती रत्नावली.

विद्वता काल के गाल जाती, अगर
               देती यौवन न बलिदान , रत्नावली.
काम का केतु ग्रास हेतु को लेता सच
              करती शर यदि न संधान रत्नावली.
तन है नश्वर न स्वीकारते वर्ण स्वर
              सत्य देती न साद ज्ञान रत्नावली.
वर सी विदुषी श्री तुलसी की दिग्दर्शिका
              संत तुलसी की पहचान रत्नावली .

वंदना योग्य युग-युग सुकृति  मानसी
              विश्व कवि का प्रथम छंद रत्नावली.
वन सुमन से खिले रह निराहार भी
              दिव्य आहार नवकंद रत्नावली .
सत्य से ही परे रहते तुलसी अरे
               संत जीवन का आनंद रत्नावली .
यह सुधा रस पिलाते न तुलसी सुकवि
               मंजरी रस की मकरंद रत्नावली.

4 comments:

S.N SHUKLA said...

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.

Anonymous said...

"मंजरी रस की मकरंद रत्नावली"
वाह वीरेन्द्र जी मंत्रमुग्ध कर दिया - रचना पढवाने के लिए आभार

virendra said...

राकेश जी ,
मैं आभारी हूँ , आपके स्नेह और औदार्य का , धन्यवाद

virendra said...

aadardeey shukla ji chiteri kaavya shakti ko naman shubhasheesh sirmaathe sajaa rahe prabhu se vinay hai