कामिनी यदि नहीं होती रत्नावली.
लाल हुलसी का तुलसी न बनता कभी
भामिनी यदि नहीं होती रत्नावली .
संत के कर्म के पंथ पर रहता तम
दामिनी यदि नहीं होती रत्नावली .
पति को सदगति न मिलती कभी स्वप्न में,
स्वामिनी यदि नहीं होती रत्नावली.
विद्वता काल के गाल जाती, अगर
देती यौवन न बलिदान , रत्नावली.
काम का केतु ग्रास हेतु को लेता सच
करती शर यदि न संधान रत्नावली.
तन है नश्वर न स्वीकारते वर्ण स्वर
सत्य देती न साद ज्ञान रत्नावली.
वर सी विदुषी श्री तुलसी की दिग्दर्शिका
संत तुलसी की पहचान रत्नावली .
वंदना योग्य युग-युग सुकृति मानसी
विश्व कवि का प्रथम छंद रत्नावली.
वन सुमन से खिले रह निराहार भी
दिव्य आहार नवकंद रत्नावली .
सत्य से ही परे रहते तुलसी अरे
संत जीवन का आनंद रत्नावली .
यह सुधा रस पिलाते न तुलसी सुकवि
मंजरी रस की मकरंद रत्नावली.
4 comments:
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
"मंजरी रस की मकरंद रत्नावली"
वाह वीरेन्द्र जी मंत्रमुग्ध कर दिया - रचना पढवाने के लिए आभार
राकेश जी ,
मैं आभारी हूँ , आपके स्नेह और औदार्य का , धन्यवाद
aadardeey shukla ji chiteri kaavya shakti ko naman shubhasheesh sirmaathe sajaa rahe prabhu se vinay hai
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