नर-नारी के लिए दिव्य वर गर्भ पला जिसके जगदीश्वर .
वेद पुराण उपनिषद अग-जग, महिमा जिसकी यहाँ वहां.
उठो और जागो ,ऐ बेटों , मान तो बस होती है माँ.
पिता हमारा परम पिता, शिशु बीज गर्भ में जो बोये .
माता मुदित संवार कोख में, नौ दस मास जिसे ढोए.
जन्म हमें दे, दुखी न हो शिशु, माँ जागे जब हम सोये .
ऐसी माँ के तिरस्कार के, पाप कहाँ जाते धोए.
माँ से बढ़कर स्वर्ग न कोई , माँ की कहीं नहीं उपमा.
उठो और जागो ऐ बेटों , माँ तो बस होती है माँ .
मल-मल निर्मल कर तन मन दे लाल ललाट दिठौना माँ .
धरती काँटों पर सोये, दे आँचल हमें बिछौना माँ .
लुट-लुट, घुट-घुट स्वयम हमें दे, भोजन और खिलौना माँ .
रक्त पिलाती दूध पिलाकर, हमको करे सलोना माँ.
सुर मुनि मानव दानव कहते माँ जैसी निधि और कहाँ .
उठो और जागो ऐ बेटों , माँ तो बस होती है माँ .
2 comments:
"माँ तो बस होती है माँ"
अक्षरशः सत्य, माँ की महिमा अपार है - प्रशंसनीय प्रस्तुति - साधुवाद
राकेश जी
रचना पसंद आयी , बहुत- बहुत आभार , धन्यवाद
Post a Comment