वंदन हे उद्धव प्यारे आये प्रिय प्रेम नगरिया!
तुम ज्ञान योग के मारे मेरो योगेश्वर सांवरिया .
हम सब नित प्रेम दीवानी
जग के धन पानी-पानी
मिटटी के माधव हो तुम
कब पीर प्रेम की जानी
साँसों को श्याम सँवारे मन श्याम की है बांसुरिया .
तुम ज्ञान योग के मारे मेरो योगेश्वर सांवरिया .
कभी पनघट पे आ जाये
कभी वंशी तान सुनाये
वन में मन डर जाऊं
वन से घर तक पहुंचाए.
वो पग-पग साथ हमारे चलता नित प्रेम डगरिया.
तुम ज्ञान योग के मारे मेरो योगेश्वर सांवरिया .
तुम लाये जिसकी पाती
कब दूर है उनकी थाती
घर, घर का उजाला मोहन
वो दिया तो हम बाती
प्रियतम की छवि अंधियारे बीते ऐसे ही उमरिया.
तुम ज्ञान योग के मारे मेरो योगेश्वर सांवरिया .
वंदन हे उद्धव प्यारे .........
2 comments:
kya baat hai...behtrin rachna, aabhar.
सारगर्भित समालोचनात्मक स्नेहिल सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद
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