व्यर्थ अब सारे दिलासे , उठ खड़े जब भूंखे - प्यासे
कैसे मन मोहन बनेंगे ऐसे पोलिटिकल तमाशे
खुल गए आक्रोश के गढ़ ; खुल गए सब बंद ताले
लूट पायेंगे न काले लोग उठ जागे जियाले
हाथ भृष्टाचार के धन कीर्ति की बरबादियाँ
राष्ट्र में लाईं गुलामी कैसी यह आजादियाँ
मुक्त भृष्टाचार का डंका ये भारत देश में
राक्षसों की है अजब लंका ये भारत देश में
अस्मिता के राष्ट्र के वह दुर्ग अब धंसने लगे हैं
कैसी आजादी हमें अपने स्वयं डसने लगे हैं
लुट गए सपने सभी के , हो रहा हर और कृन्दन
सत्य ! करना ही पडेगा , फिर नया अब सिन्धु मंथन
जन- जनार्दन बीच जब बढ़ती गयीं ये खाईयाँ
निर्बलों , विकलों ने ली विद्रोह की अंगड़ाइयां
पर्व जब राष्ट्रीय ! गूँजें गीत कैसे शान्ति के
भ्रान्ति के परदे उठे फिर खुल गए पथ क्रान्ति के
आँख खोलो देख लो नव युद्ध की रणभेरियाँ
नारियाँ नर बालकों वृद्धों की उठतीं फेरियाँ
गा रहे सब , चाहती वलिदान भारत- भारती
मांगती बापू का हिन्दुस्तान भारत - भारती
कह रहे, मिल, क्रान्ति पथ पर पग बढ़ाने का समय
शीश भ्रष्ट दशाननों के अब चढ़ाने का समय
व्रत , यही संकल्प ले मन में लगन यह ठानकर
लीडरों, संभालो चला जन- जन तिरंगे तान कर
गर्जना अभिमन्यु की फिर , व्यूह के हर द्वार से
मुक्त हो भारत हमारा , दैत्य भ्रष्टाचार से
राष्ट्र ! भ्रष्टाचार में बढ़कर विषैला हो गया
दिव्य आँचल फिर से भारत माँ का मैला हो गया
नाम दे कोई भले यह व्यक्ति का उन्माद है
सत्य ! नव जन जागरण की यह सुदृढ़ बुनियाद है
मिल गए , पीड़ा में जलते पंछियों को पंख फिर
देश , भ्रष्टाचार त्यागे , बज उठे ये शंख फिर
पहरुए हो राष्ट्र के, अब भी संभलना सीख लो
दर्द नागरिकों का, जीवन में निगलना सीख लो
धैर्य की, ऐश्वर्य के घर से, परीक्षाएं न लो
घृणित ! आजादी के कर्मों की समीक्षाएं न लो
वरना , वह दिन आयेगा , घर के न होगे घाट के
भूखे- प्यासे , नंगे रख देंगे विवशतः काट के
कर्म की कुत्सित कथाएं. लिख न पायेगी कलम
बच्चा - बच्चा, गा रहा जय हिंद , वन्देमातरम
9 comments:
अनुनाद करती हुई बेहद खुबसूरत रचना..
जय हिन्द! जय हिन्द!!
बेहद खूबसूरत रचना आभार
गा रहे सब , चाहती वलिदान भारत- भारती
मांगती बापू का हिन्दुस्तान भारत - भारती
कह रहे, मिल, क्रान्ति पथ पर पग बढ़ाने का समय
शीश भ्रष्ट दशाननों के अब चढ़ाने का समय ...
तिवारी जी ..बहुत ही भावपूर्ण आह्वान गीत ...
आपके ब्लॉग में आकर मन आल्हादित हो गे जय हो माँ भारती की जय हो आपकी....
सादर अभिनन्दन !!!
amrita ji jan gan man ke jan jaagran ke shankhnaad kee abhivykti kee saraahanaa ke liye shat shat aabhaar
ओज पूर्ण प्रस्तुति ....
Bahut khub !
वाह ! क्या लिखा है आपने सचमुच लाजावाब,बेहद खुबसूरत रचना...
आप भी यहाँ जरुर आये मुझे ख़ुशी होगी
MITRA-MADHUR
MADHUR VAANI
BINDAAS_BAATEN
गर्जना अभिमन्यु की फिर , व्यूह के हर द्वार से
मुक्त हो भारत हमारा , दैत्य भ्रष्टाचार से! बहुत सुन्दर तिवारी जी ! बधाई ! आज जागरुक होने की जरुरत है !
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