वहशी हुए , बढ़े बड़े नागों के हौसले ,
अब पस्त करें , दहशती रागों के हौसले /
तूफानों ! तबाही के, हकीकत ये जान लो ,
टूटेंगे नहीं , जलते चिरागों के हौसले /
दहशत , का कौन फिर गया बारूद बिछाके ,
वहशी ने रख दिया ये वतन फिर से हिलाके ,
ये खेल खेलते हैं जो भी आग के छुपकर -
वे नरपिशाच ! करते कराते हैं धमाके /
वहशी - दरिंदों के , कलेजे फाड़ दें - उठें ,
अब वक्त आया , बाघ से दहाड़ दें - उठें
नफ़रत की आग घर में लगाते जो सिरफिरे
करते जो छाती पर , तिरंगा गाड़ दें - उठें
बम के जवाब में उठें जागें कहें, बम- बम
सब मिलके देखें देशद्रोहियों में कितना दम
चल जंग हो , दहशत से पुकारे ये तिरंगा
जय हिंद ! जय हे भारत, जय वन्दे मातरम्
एक विकल्प एक संकल्प कायाकल्प के लिए इतना और
--------------------------------------------------------
कर्ज़ ! माता मात्रभूमि का , चुकाना ठान लें /
लूटना क्या , राष्ट्र पर जीवन लुटाना ठान लें /
पाँव तो आगे बढायें ,स्वार्थ पल भर भूल कर ,
फिर तिरंगा ! हाथ में मन से उठाना ठान लें /
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तूफानों ! तबाही के, हकीकत ये जान लो ,
टूटेंगे नहीं , जलते चिरागों के हौसले /
दहशत , का कौन फिर गया बारूद बिछाके ,
वहशी ने रख दिया ये वतन फिर से हिलाके ,
ये खेल खेलते हैं जो भी आग के छुपकर -
वे नरपिशाच ! करते कराते हैं धमाके /
वहशी - दरिंदों के , कलेजे फाड़ दें - उठें ,
अब वक्त आया , बाघ से दहाड़ दें - उठें
नफ़रत की आग घर में लगाते जो सिरफिरे
करते जो छाती पर , तिरंगा गाड़ दें - उठें
बम के जवाब में उठें जागें कहें, बम- बम
सब मिलके देखें देशद्रोहियों में कितना दम
चल जंग हो , दहशत से पुकारे ये तिरंगा
जय हिंद ! जय हे भारत, जय वन्दे मातरम्
एक विकल्प एक संकल्प कायाकल्प के लिए इतना और
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कर्ज़ ! माता मात्रभूमि का , चुकाना ठान लें /
लूटना क्या , राष्ट्र पर जीवन लुटाना ठान लें /
पाँव तो आगे बढायें ,स्वार्थ पल भर भूल कर ,
फिर तिरंगा ! हाथ में मन से उठाना ठान लें /
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12 comments:
बहुत बहुत बधाई ||
आप जब भी नई पोस्ट लाते हैं |
नया उत्साह जगाते हैं ||
सच्चे कवि का दायित्व निभाते हुए समसामयिक प्रस्तुति - साधुवाद
"पाँव तो आगे बढायें, स्वार्थ पल भर भूल कर"
सभी मुक्तक एक से बढ़ कर एक ...ओजपूर्ण ..
आज 11- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
आस्था, विश्वास और सर्वकल्याण की भावना से ओतप्रोत सुन्दर रचना !
behatareen bhaav.
सुन्दर मुक्तक....
सादर नमन
वहशी - दरिंदों के , कलेजे फाड़ दें - उठें ,
अब वक्त आया , बाघ से दहाड़ दें - उठें
नफ़रत की आग घर में लगाते जो सिरफिरे
करते जो छाती पर , तिरंगा गाड़ दें - उठें
ओज गुण प्रधान इस रचना के माध्यम से आपने देश प्रेम के भावों को बड़ी खूबसूरती से संजोया है ....आपका आभार
हर मुक्तक जोश भरता हुआ ..अच्छी प्रस्तुति
vandneeyaa sangeetaa ji ,saadar naman .saraahanaa ke shabd shubhaasheesh hain srijan ke path par ,prabnu se vinay hai aapke snehaasheesh se vanchit na rahoon ,bas adhik kyaa likhen . pranaam .
priyvar keval ram jee , muktak manjree -2 ruchikar lagee . dhanyawaad .
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