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Tuesday, September 27, 2011

हम तुम्हारे गाँव

यह रचना मेरे सुकवि बन्धु राम मोहन शुक्ल "सजल" का सृजन है , आप सभी के  स्नेहाशीष की अपेक्षा में -------


हम तुम्हारे गाँव , आयेंगे कभी फिर ,
आज मन की साँझ, गहराने लगी  /   
वेदना विचलित , मिलन की आस के पल,
प्यास मन का दोष ठहराने लगी  /
 हम तुम्हारे गाँव ---------------

पूछते हो हाल, सब कुछ ठीक है ,
मुक्त मन पर वेदना की लीक है  /
पाहुने प्रतिबन्ध के घर आ टिके ,
बांसुरी की साध , घबराने लगी  /
 हम तुम्हारे गाँव----------------

क्या कहा ? हम रास्ते से हट गए ,
दरअसल कुछ लोग हमसे कट गए /
बन गए हैं ईद का हम चाँद तो क्या ,
घर  तुम्हारे -  पूर्णिमा आने लगी  /
 हम तुम्हारे गाँव -----------------

बेबसी के गीत , अब भी बेचता हूँ ,
नियति के फुटपाथ का असली पता हूँ /
हो सके तो भेज देना एक पाती  ,
इस पते पर रात भरमाने लगी  /
 हम तुम्हारे गाँव आयेंगे कभी फिर ,
आज मन की साँझ गहराने लगी /  

                         -   राम मोहन शुक्ल "सजल"


   


2 comments:

रविकर said...

खूबसूरत प्रस्तुति ||

बधाई ||

नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं

dcgpthravikar.blogspot.com

dineshkidillagi.blogspot.com
neemnimbouri.blogspot.com

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर रचना पढवाने के लिए आभार