विजेट आपके ब्लॉग पर

Tuesday, September 13, 2011

हिन्दी हमारी माँ

वषों मनाते हैं रहे , स्वाधीन हम , हिन्दी दिवस  ! 
वैषम्य,कैसा रात दिन होती रही , हिन्दी विवश  !

वह आंग्लभाषा आवरण , हम त्याग भी पाए  कहाँ ?
हिन्दी रही वक्तव्य में , उठ जाग भी पाए कहाँ ?

चौपाइयों की सोरठों , दोहों की छप्पय , छंद की /
लालित्य निधि खोती रही रस भाव के आनंद की /

जुटती रही लुटती रही , भाषा की हर विश्वास निधि /
होती रही वलिदान दिन - दिन स्वार्थ पंथ विकास निधि /

रस का सुयश पल पल विवश , सच नित्य रत्नाकर लुटा /
हिंदी रही लुटती सदा , हिन्दी का हर आखर लुटा /

हिन्दी नहीं लुटती रही , लुटते रहे हैं  आप  हम ,
क्या सत्य अंगरेजी   में हम  गायेंगे  वन्दे  मातरम्  /

हम चन्द वरदायी बनें ,  कवि राष्ट्र रखवाले रहें  /
भूषण , निराला  वेश हो,दिनकर   सुयश पाले रहें /

हिन्दी हमारी आन भारत शान रस की संहिता  ,                                                              
अब भी रहे सोते जलेगी राष्ट्रभाषा की चिता  /

हिन्दी!हमारी माँ!कहो,माँ जैसा प्यारा कौन है ?
हिन्दी की,ऐसी दुर्दशा पर,राष्ट्र  सारा  मौन है  /

हो युद्ध , हिन्दी ! भारती के भाल की बिंदी रहे /
निष्प्राण जब तक हम न हों , सच प्राणप्रिय हिन्दी रहे  /

सच दीन सी  पथ देखती , जल , मीन सी माँ भारती /
हिन्दी  पुरोधा कब करें , हिन्दी में भाषा  आरती //

2 comments:

रविकर said...

हिंदी की जय बोल |
मन की गांठे खोल ||

विश्व-हाट में शीघ्र-
बाजे बम-बम ढोल |

सरस-सरलतम-मधुरिम
जैसे चाहे तोल |

जो भी सीखे हिंदी-
घूमे वो भू-गोल |

उन्नति गर चाहे बन्दा-
ले जाये बिन मोल ||

हिंदी की जय बोल |
हिंदी की जय बोल |

virendra said...

priy ravikar ji
hindi ke sankhnaad ke liye aabhaar