अब न भ्रष्टाचार धुन पर, नाचेंगे बनकर जमूरे
लूटने देंगे न, भारत देश , धन अब दिन- दहाड़े
गूंजते विद्रोह के स्वर ,बज उठे रण के नगाड़े /
देख लो ! जनतंत्र जागा , खुल गयीं अब बंद आँखें
अब निरंकुश शासकों के, घर की टूटेंगी सलाखें
देखना ये भूखे- प्यासे , तोड़ देंगे घर- किवाड़े
बज उठे रण के नगाड़े ------
नष्ट कर डाला हिमालय , कर रहे दूषित ये गंगा
धन के भूखे धूर्त , रख दें मत कहीं गिरवी तिरंगा
सर्प डसते, और ओझा बिच्छुओं का जहर झाड़े /
बज उठे रण के नगाड़े ------
बहुत भरमाया वतन को , और भरमाना न आगे
पाप कर, पापी किसी को, और ठहराना न आगे
वरना ! संसद से सड़क तक , ताल ठोकेंगे अखाड़े /
बज उठे रण के नगाड़े ------
अपनी कथनी- करनी का, हर दंड खुद भरना पड़ेगा
पाप सब, स्वीकार करना भी, स्वतः मरना पड़ेगा
अब लताड़ा यदि वृथा , जन- गण भुला देगा पहाड़े /
बज उठे रण के नगाड़े ------
राह पर आओ , समय है , सच सुनो - ओ बेशरम
जागरण ! जन - गण उठा ध्वज- यन्त्र वन्दे मातरम
याद रखना ! अब करोड़ों लोग अपना लक्ष्य ताड़े /
बज उठे रण के नगाड़े ------
सत्य यह भी, युद्ध अपनों से - नहीं जाता लड़ा
किन्तु कोई देश, धरती माँ से कब होता बड़ा ?
मूर्ख ! जो स्तम्भ यश के, राष्ट्र के खुद ही उखाड़े /
बज उठे रण के नगाड़े ,बज उठे रण के नगाड़े /
13 comments:
वीरेंद्र जी ,
चेतावनी देती यह रचना बहुत अच्छी लगी ..काश हमारे आका इसे समझ सकें ... वो तो बस आंदोलनकारियों की जड़ें खोदने पर लगे हैं ..खुद नहीं सुधरना चाहते ..
बहुत - बहुत आभार गुरुजनों का ||
सादर प्रणाम ||
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आपको बधाई ||
सच के बहुत निकट, सटीक और शानदार प्रस्तुति , आभार
सटीक शानदार प्रस्तुति , आभार.....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति-----आभार
धन्यवाद.
सार गर्भित और चेतावनी भरी हुनकर ! प्रेरणादायी !
aadarniy sir
aap mere blog paraaye iske liye aapki dil se aabhari hun.
pahli bar me hiaapke blog ne man ko moh liya.
bahut hi shandaar v oj purn prastuti ke liye hardik badhai
poonam
aadardeenyaa nishpaksha tippdee ke liye saabhaar
bahut bahut aabhaar
bahut bahut aabhaar
param aadardeeya snehil tippadeen ke liye kritagya
param aadardeeya snehil tippadeen ke liye kritagya
बहुत सुन्दर जोशपूर्ण आवाहन करती
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
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