वषों मनाते हैं रहे , स्वाधीन हम , हिन्दी दिवस !
वैषम्य,कैसा रात दिन होती रही , हिन्दी विवश !
वह आंग्लभाषा आवरण , हम त्याग भी पाए कहाँ ?
हिन्दी रही वक्तव्य में , उठ जाग भी पाए कहाँ ?
चौपाइयों की सोरठों , दोहों की छप्पय , छंद की /
लालित्य निधि खोती रही रस भाव के आनंद की /
जुटती रही लुटती रही , भाषा की हर विश्वास निधि /
होती रही वलिदान दिन - दिन स्वार्थ पंथ विकास निधि /
रस का सुयश पल पल विवश , सच नित्य रत्नाकर लुटा /
हिंदी रही लुटती सदा , हिन्दी का हर आखर लुटा /हिन्दी नहीं लुटती रही , लुटते रहे हैं आप हम ,
क्या सत्य अंगरेजी में हम गायेंगे वन्दे मातरम् /
हम चन्द वरदायी बनें , कवि राष्ट्र रखवाले रहें /
भूषण , निराला वेश हो,दिनकर सुयश पाले रहें /हिन्दी हमारी आन भारत शान रस की संहिता ,
अब भी रहे सोते जलेगी राष्ट्रभाषा की चिता /
हिन्दी!हमारी माँ!कहो,माँ जैसा प्यारा कौन है ?
हिन्दी की,ऐसी दुर्दशा पर,राष्ट्र सारा मौन है /
हो युद्ध , हिन्दी ! भारती के भाल की बिंदी रहे /
निष्प्राण जब तक हम न हों , सच प्राणप्रिय हिन्दी रहे /
सच दीन सी पथ देखती , जल , मीन सी माँ भारती /
हिन्दी पुरोधा कब करें , हिन्दी में भाषा आरती //
2 comments:
हिंदी की जय बोल |
मन की गांठे खोल ||
विश्व-हाट में शीघ्र-
बाजे बम-बम ढोल |
सरस-सरलतम-मधुरिम
जैसे चाहे तोल |
जो भी सीखे हिंदी-
घूमे वो भू-गोल |
उन्नति गर चाहे बन्दा-
ले जाये बिन मोल ||
हिंदी की जय बोल |
हिंदी की जय बोल |
priy ravikar ji
hindi ke sankhnaad ke liye aabhaar
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