यह रचना मेरे सुकवि बन्धु राम मोहन शुक्ल "सजल" का सृजन है , आप सभी के स्नेहाशीष की अपेक्षा में -------
हम तुम्हारे गाँव , आयेंगे कभी फिर ,
आज मन की साँझ, गहराने लगी /
वेदना विचलित , मिलन की आस के पल,
प्यास मन का दोष ठहराने लगी /
हम तुम्हारे गाँव ---------------
पूछते हो हाल, सब कुछ ठीक है ,
मुक्त मन पर वेदना की लीक है /
पाहुने प्रतिबन्ध के घर आ टिके ,
बांसुरी की साध , घबराने लगी /
हम तुम्हारे गाँव----------------
क्या कहा ? हम रास्ते से हट गए ,
दरअसल कुछ लोग हमसे कट गए /
बन गए हैं ईद का हम चाँद तो क्या ,
घर तुम्हारे - पूर्णिमा आने लगी /
हम तुम्हारे गाँव -----------------
बेबसी के गीत , अब भी बेचता हूँ ,
नियति के फुटपाथ का असली पता हूँ /
हो सके तो भेज देना एक पाती ,
इस पते पर रात भरमाने लगी /
हम तुम्हारे गाँव आयेंगे कभी फिर ,
आज मन की साँझ गहराने लगी /
- राम मोहन शुक्ल "सजल"
2 comments:
खूबसूरत प्रस्तुति ||
बधाई ||
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं
dcgpthravikar.blogspot.com
dineshkidillagi.blogspot.com
neemnimbouri.blogspot.com
बहुत सुन्दर रचना पढवाने के लिए आभार
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