दिन और रात तुम्हारी बातें,
कैसे कह दूं इन यादों में ,खुशियों का संसार नहीं है .
दूर हो जितना, पास हो उतना ,कैसे कह दूं प्यार नहीं है ?
कैसे कह दूं प्यार नहीं है ?
कैसे कह दूं प्यार नहीं है ?
आँखों में सजते हैं लाखों अब भी सुन्दर स्वप्न सजीले,
सपनों में रसखान हुए सच , सागर तेरे होंठ रसीले ,
आकर्षण रस भाव सुवर्षण करते तेरे नयन हठीले ,
कैसे भूले, भूले से भी , यदि कोई यह अमृत पीले ,
बूँद-बूँद में भरा सृजन रस, कैसे कह दूं सार नहीं है ?
दूर हो जितना, पास हो उतना ,कैसे कह दूं प्यार नहीं है ?
रूप है ऐसा देख फ़रिश्ते , क्यों अपना दिल थाम न लेंगे ,
चलाती-फिरती मधुशाला क्यों प्यासे भी पी जाम न लेंगे ?
साँसें दहतीं, कहती रहतीं अब संयम से काम न लेंगे ,
लुट जायेंगे इस मदिरालय पर, जीने का नाम न लेंगे
मिटने का यह दीवानापन , जीत प्यार की हार नहीं है .
दूर हो जितना, पास हो उतना ,कैसे कह दूं प्यार नहीं है ?
कंगन की खन-खन लूटे मन, पागल करती पायल छम-छम ,
कुंडल डोल , कपोल चूमते , रस का गंगा-यमुनी संगम ,
थम-थम कर साँसों का चलना , टूट रहा है जैसे संयम ,
यही समर्पण कम क्या , सपनों में हैं एक न बिछुड़े तुम-हम .
जब सर्वस्व तुम्हारा , कैसे कह दूं , यह अधिकार नहीं है .
दूर हो जितना, पास हो उतना ,कैसे कह दूं प्यार नहीं है ?
कैसे कह दूं प्यार नहीं है ?
कैसे कह दूं प्यार नहीं है ?
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