विजेट आपके ब्लॉग पर

Monday, June 20, 2011

दूर रहकर भी जीने लगे

वर्ष भी दिन- महीने लगे ,
दूर रहकर भी जीने लगे /

जख्म जो वक्त की वादियों ने दिए ,
कितने जुल्म-ओ-सितम आँधियों ने किये.
पार फिर भी शफीने लगे,
दूर रहकर भी जीने लगे /

हस्तियाँ कितनी हैं बावफा दर्द की ,
मस्तियाँ बाखुदा इक दवा दर्द की.
अश्क -ए   -मय हम तो पीने लगे,
 दूर रहकर भी जीने लगे /

सायेदारी न हो तो शज़र की खता ,
बेकरारी न हो तो नज़र की खता ,
गैरों को हम कमीने लगे,
दूर रहकर भी जीने लगे /

ये तसल्ली तो है ,प्यार सायों में है ,
प्यार की दौलतें बस परायों में है ,
दिल को मौजूं करीने लगे ,
दूर रहकर भी जीने लगे /

कौन कहता है सस्ती बड़ी दिल्लगी ,
जिन्दगी भर सुलगती रहे जिन्दगी ,
जख्म फिर अपने सीने लगे ,
दूर रहकर भी जीने लगे /

No comments: