कुछ सुहाया कब तेरे बिन,
जब सजी संध्या की डोली ,
रच सितारों की रंगोली ,
रातरानी जैसी सुन्दर ,
देखने में और भोली ,
बाँझ जैसी सांझ पहली बार सिंदूरी लगी .
रच रहा वर्षों से जो तस्वीर, अब पूरी लगी .
अब भी वे यादें जवाँ, जब ताकते थे दूर थे ,
प्रीती की हर रीति खट्टे सच बड़े अंगूर थे ,
लाख कोशिश की गिरे कुछ ऐसे सपने टूटकर ,
दूरियां ये , जाने कैसे प्यार के दस्तूर थे ,
नूर के हर अक्स को जाने लगी किसकी नज़र
आज जब देखा, नज़र हर बार अंगूरी लगी .
रच रहा वर्षों से जो तस्वीर, अब पूरी लगी
अब भी बचपन का वही बीता ज़माना याद है ,
प्यार अपनेपन का खुलकर खिलखिलाना याद है ,
मुस्कुराना,गुनगुनाना , फिर लजाना आप ही ,
सांस की ले पर वो सरगम गुनगुनाना याद है ,
प्यार के उन सिलसिलों में दूरियों की दास्ताँ ,
मेरी मजबूरी कभी सच तेरी मजबूरी लगी .
रच रहा वर्षों से जो तस्वीर, अब पूरी लगी
2 comments:
अब भी बचपन का वही बीता ज़माना याद है ,
प्यार अपनेपन का खुलकर खिलखिलाना याद है ,
मुस्कुराना,गुनगुनाना , फिर लजाना आप ही ,
सांस की ले पर वो सरगम गुनगुनाना याद है ,
प्यार के उन सिलसिलों में दूरियों की दास्ताँ ,
मेरी मजबूरी कभी सच तेरी मजबूरी लगी .
रच रहा वर्षों से जो तस्वीर, अब पूरी लगी
Bhavmayi lekhani hai. Badhi.
sneh ke chaar shabd mun ke chaaron kon0n mein nutan jyoti bikher rahe hain dhanyawaad
Post a Comment