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Wednesday, September 21, 2011

वंशी को दे न ताने

वंशी को  दे  न  ताने ,  मृदुरागिनी  है वंशी  /
क्यों बांस वन का माने, सुरवादिनी है , वंशी  

परदेश से  न आयी , वृज में गयी बनायी ,
बींधी  गयी  है  पहले , पीछे  गयी बजायी , 
पीड़ा न कोई जाने , स्वर स्वामिनी है वंशी /
वंशी को  दे  न  ताने ,  मृदुरागिनी  है वंशी  /


धुन सुन के  बत्स- गैया , सँग  नाचता  कन्हैया 
मधुवन सुमन भी झूमें , तरु करते ता- ता थैया 
स्वर ऐसे मृदु सुहाने , अनुगामिनी है वंशी  /
वंशी को  दे  न  ताने ,  मृदुरागिनी  है वंशी  /


वृज रज घरों में वंशी , नारी नरों में वंशी 
अधरों के तट लिपट कर , बजती सुरों में वंशी 
दे श्याम धुन बजाने , सहवासिनी है  वंशी /
 वंशी को  दे  न  ताने ,  मृदुरागिनी  है वंशी  /



2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वंशी के बारे में सुन्दर रचना .

अनुपमा पाठक said...

सुन्दर!