क्यों बांस वन का माने, सुरवादिनी है , वंशी
परदेश से न आयी , वृज में गयी बनायी ,
बींधी गयी है पहले , पीछे गयी बजायी ,
पीड़ा न कोई जाने , स्वर स्वामिनी है वंशी /
वंशी को दे न ताने , मृदुरागिनी है वंशी /
वंशी को दे न ताने , मृदुरागिनी है वंशी /
धुन सुन के बत्स- गैया , सँग नाचता कन्हैया
मधुवन सुमन भी झूमें , तरु करते ता- ता थैया
स्वर ऐसे मृदु सुहाने , अनुगामिनी है वंशी /
वंशी को दे न ताने , मृदुरागिनी है वंशी /
वंशी को दे न ताने , मृदुरागिनी है वंशी /
वृज रज घरों में वंशी , नारी नरों में वंशी
अधरों के तट लिपट कर , बजती सुरों में वंशी
दे श्याम धुन बजाने , सहवासिनी है वंशी /
वंशी को दे न ताने , मृदुरागिनी है वंशी /
वंशी को दे न ताने , मृदुरागिनी है वंशी /
2 comments:
वंशी के बारे में सुन्दर रचना .
सुन्दर!
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