जी रहे जन से सुमन बंधन बनाने के लिए //
पी रहे विष राष्ट्र का निधिवन सजाने के लिए //
अन्य के हित के लिए विष भी निगलना,धर्म है
अग्निपथ भी धर्म के रक्षार्थ चलना धर्म है
छल करे जो ऐसे शठ को सत्य छलना धर्म है
देश हित में बनके दीपक सत्य जलना धर्म है
धर्म के प्रतिकूल करते शूल का नित संचयन
धर्म पथ पर हम चले अब पग बढाने के लिए //
राष्ट्र हमसे राष्ट्र के हम ,अब भुला सब भ्रान्तियाँ
राष्ट्र की रक्षक हमारी एकता की कान्तियाँ
विश्व के कल्याण पथ पर कब सताएं श्रान्तियाँ
हम उठे जागे नहीं यदि व्यर्थ हैं यह क्रान्तिया
एक है संकल्प जन गण राष्ट्र का हो उन्नयन
सब बढ़ें पथ पर विजय दीपक जलाने के लिए //
जान लें नेता जो जन गण सुख से खेलें होलियाँ
मिल गए अवसर अभी लें लूट भर लें झोलियाँ
किन्तु अपने मान की लुटने न देंगे डोलियाँ
फिर कफ़न सर बाँध यदि चल दीं शहीदी टोलियाँ
हिन्दवानी की कसम ,पानी न माँगे पायेंगे ,
राष्ट्र पर जिस दिन चले जन बलि चढाने के लिए //
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