याद अब तक , है वो सोंधी सी महक धरती की
दूर रहकर भी नहीं, गाँव! भुलाए भूले /
रहट -के गीत ,वे पनघट , नदी वो ताल भरे
बूढ़े बरगद की नहीं छाँव भुलाए भूले /
अब भी आँखों में उमड़ते हैं वो सावन भादों
झूले मेंहदी रचे न पाँव भुलाए भूले /
आह उठती है हूक ,सुनते कूक कोयल की
वे मिलन के न ठौर -ठाँव भुलाए भूले /
बैठ छत की मुंडेर , टेरते सवेरे से
काग की वो न कांव काँव भुलाए भूले /
नहीं गाँव भुलाए भूले =================
3 comments:
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
बहुत बहुत बधाई ||
गाँव की सोंधी महक को समेटे अच्छी रचना
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