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Saturday, October 1, 2011

वेदना से परे मन से मन का मिलन ---

वंदन है महौषधि सच न सजे उपचार  बिना जीवन 
ध्रुवसत्य प्रिये  सुन्दर  न लगे श्रृंगार बिना  जीवन 
स्वीकार करो न करो इतना अधिकार तुम्हारा है , 
विश्वास करो सँवरे न कभी भी प्यार बिना जीवन

             +++

वेदना से परे मन से मन का मिलन  
सच स्वयं से कभी प्यार भी तो करो !
छवि से सुन्दर सुछवि हो स्वयं प्रियतमे 
मन से जीवन में श्रृंगार भी तो करो  !!
  वेदना  से परे मन से मन का मिलन ---

रस की गागर हैं सागर तुम्हारे नयन 
आये तन के भवन मन के द्वारे नयन 
तारे टूटे मगर मन न टूटा कभी 
प्रीति पथ पर  न पल भर भी हारे नयन 
देखो दर्पण ह्रदय में भरा अपनापन 
काँच से दो नयन चार भी तो करो !
वेदना से परे---------------------

अंग प्रत्यंग तन मन सजा लीजिये 
भाल पर लाल बिंदी रचा लीजिये 
चाहने वाला दर्पण सा कोई नहीं 
तृप्ति ! प्यासी है जी भर लजा लीजिये /
राधिका सी सजा तन का यह वृन्दावन 
कृष्ण मन तृष्ण उपकार भी तो करो /
वेदना से परे -----------------------


मन की आशा का पनघट न प्यासा रहे ,
अपनेपन का अधर तट न  प्यासा रहे  , 
भरके अंजन नयन से नयन जब मिलें 
दो नयन प्यासे घूँघट न प्यासा रहे  ,
सीख तो बाहों में भरना लो अपना तन -
सार जीवन है अभिसार भी तो करो /
वेदना से परे ------------------------

रँग लो जीवन सुमन  प्रीति के रंग से ,
प्यार बरसे प्रिये तन के हर अंग से 
मन मदन भी बहकने लगे देखकर 
सन्त मन के लगें होने व्रत  भंग से  ,
सोंच मत कर न संकोच हो नव सृजन 
सत्य यह एक स्वीकार भी तो करो  !
वेदना से परे -----------------------

कर्म पथ पर भरी आग ही आग है 
साँस की बाँसुरी में महा राग है , 
बाग़ जीवन का अनुराग से ही सजे  
प्यार बसता जहाँ फाग ही फाग है ,
तपते -तपते तरल कब हो मन की तपन 
प्रेम से पूर्ण उपचार भी तो करो  /

अब ये माने प्रिये या की माने नहीं 
साँस में प्रेम के अना यदि तराने  नहीं 
तन सजाया न मन यदि सजाया गया
 फिर तो सजना सजाना ही जाने नहीं 
इससे पहले कोई आ ओढ़ाए कफ़न 
ये नदी नेह की पार भी तो करो  ,/
वेदना से परे -----------------------
मन से मन का मिलन --------------

वेदना  से  परे  मन  से  मन  का  मिलन ---

2 comments:

रविकर said...

सुन्दर प्रस्तुति ||
आभार महोदय ||

S.N SHUKLA said...

बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना , बधाई