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Sunday, June 19, 2011

तस्वीर अब पूरी लगी

वायदे करते गए दिन,
कुछ सुहाया कब तेरे बिन,
जब सजी संध्या की डोली ,
रच सितारों की रंगोली ,
रातरानी जैसी सुन्दर ,
देखने में और भोली ,
बाँझ जैसी सांझ पहली बार सिंदूरी लगी .
रच रहा वर्षों से जो तस्वीर, अब पूरी लगी .

अब भी वे यादें जवाँ, जब ताकते थे दूर थे ,
प्रीती की हर रीति खट्टे सच बड़े अंगूर थे ,
लाख कोशिश की गिरे कुछ ऐसे सपने टूटकर ,
दूरियां ये , जाने कैसे प्यार के दस्तूर थे ,
नूर के हर अक्स को जाने लगी किसकी नज़र 
आज जब देखा, नज़र हर बार अंगूरी लगी .
 रच रहा वर्षों से जो तस्वीर, अब पूरी लगी

अब भी बचपन का वही बीता ज़माना याद है ,
प्यार अपनेपन का खुलकर खिलखिलाना याद है ,
मुस्कुराना,गुनगुनाना , फिर लजाना आप ही ,
सांस की  ले पर वो सरगम गुनगुनाना याद है ,
प्यार के उन सिलसिलों में दूरियों की दास्ताँ ,
मेरी मजबूरी कभी सच तेरी मजबूरी लगी .
रच रहा वर्षों से जो तस्वीर, अब पूरी लगी


2 comments:

Anonymous said...

अब भी बचपन का वही बीता ज़माना याद है ,
प्यार अपनेपन का खुलकर खिलखिलाना याद है ,
मुस्कुराना,गुनगुनाना , फिर लजाना आप ही ,
सांस की ले पर वो सरगम गुनगुनाना याद है ,
प्यार के उन सिलसिलों में दूरियों की दास्ताँ ,
मेरी मजबूरी कभी सच तेरी मजबूरी लगी .
रच रहा वर्षों से जो तस्वीर, अब पूरी लगी

Bhavmayi lekhani hai. Badhi.

virendra said...

sneh ke chaar shabd mun ke chaaron kon0n mein nutan jyoti bikher rahe hain dhanyawaad