वंदन है महौषधि सच न सजे उपचार बिना जीवन
ध्रुवसत्य प्रिये सुन्दर न लगे श्रृंगार बिना जीवन
स्वीकार करो न करो इतना अधिकार तुम्हारा है ,
विश्वास करो सँवरे न कभी भी प्यार बिना जीवन
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वेदना से परे मन से मन का मिलन
सच स्वयं से कभी प्यार भी तो करो !
छवि से सुन्दर सुछवि हो स्वयं प्रियतमे
मन से जीवन में श्रृंगार भी तो करो !!
वेदना से परे मन से मन का मिलन ---
रस की गागर हैं सागर तुम्हारे नयन
आये तन के भवन मन के द्वारे नयन
तारे टूटे मगर मन न टूटा कभी
प्रीति पथ पर न पल भर भी हारे नयन
देखो दर्पण ह्रदय में भरा अपनापन
काँच से दो नयन चार भी तो करो !
वेदना से परे---------------------
अंग प्रत्यंग तन मन सजा लीजिये
भाल पर लाल बिंदी रचा लीजिये
चाहने वाला दर्पण सा कोई नहीं
तृप्ति ! प्यासी है जी भर लजा लीजिये /
राधिका सी सजा तन का यह वृन्दावन
कृष्ण मन तृष्ण उपकार भी तो करो /
वेदना से परे -----------------------
मन की आशा का पनघट न प्यासा रहे ,
अपनेपन का अधर तट न प्यासा रहे ,
भरके अंजन नयन से नयन जब मिलें
दो नयन प्यासे घूँघट न प्यासा रहे ,
सीख तो बाहों में भरना लो अपना तन -
सार जीवन है अभिसार भी तो करो /
वेदना से परे ------------------------
रँग लो जीवन सुमन प्रीति के रंग से ,
प्यार बरसे प्रिये तन के हर अंग से
मन मदन भी बहकने लगे देखकर
सन्त मन के लगें होने व्रत भंग से ,
सोंच मत कर न संकोच हो नव सृजन
सत्य यह एक स्वीकार भी तो करो !
वेदना से परे -----------------------
कर्म पथ पर भरी आग ही आग है
साँस की बाँसुरी में महा राग है ,
बाग़ जीवन का अनुराग से ही सजे
प्यार बसता जहाँ फाग ही फाग है ,
तपते -तपते तरल कब हो मन की तपन
प्रेम से पूर्ण उपचार भी तो करो /
अब ये माने प्रिये या की माने नहीं
साँस में प्रेम के अना यदि तराने नहीं
तन सजाया न मन यदि सजाया गया
फिर तो सजना सजाना ही जाने नहीं
इससे पहले कोई आ ओढ़ाए कफ़न
ये नदी नेह की पार भी तो करो ,/
वेदना से परे -----------------------
मन से मन का मिलन --------------
वेदना से परे मन से मन का मिलन ---
2 comments:
सुन्दर प्रस्तुति ||
आभार महोदय ||
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना , बधाई
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