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Saturday, October 29, 2011

जो लिपट जाऊं

हम सफ़र कैसे अज़ब हैं मेरे साए  ऐसे !

ऐसे अपने हैं ,  रहें  दूर   पराये     जैसे !!

कदम कदम जनमजनम  ये उजालों में चले 
गुम ! अंधेरों में  हुए  कोई बताये कैसे !

फिर भी सीने से लगा लेने को मजबूर हूँ मैं 
और हर रात सितम सायों ने ढाए कैसे ?

जो लिपट जाऊं ,समा जाएँ जान-ओ-जिस्म में ये 
ऐसे गायब हों कभी घर नहीं आये  जैसे !                                   

कैसी   चाहत के ये दस्तूर निभाते रहते 
आग खुद ही लगाए कोई बुझाए  जैसे !jo

जिन्दगी भर का साथ छूटे न मरते दम तक 
,मेरे साए मेरी साँसों में समाये  ऐसे  !

3 comments:

मदन शर्मा said...

सुन्दर रचना !!
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !!

अनुपमा पाठक said...

साया साथ चलता है... दीखे न दीखे!

हास्य-व्यंग्य का रंग गोपाल तिवारी के संग said...

Bahut achhi rachna.