हम सफ़र कैसे अज़ब हैं मेरे साए ऐसे !
ऐसे अपने हैं , रहें दूर पराये जैसे !!
कदम कदम जनमजनम ये उजालों में चले
गुम ! अंधेरों में हुए कोई बताये कैसे !
फिर भी सीने से लगा लेने को मजबूर हूँ मैं
और हर रात सितम सायों ने ढाए कैसे ?
जो लिपट जाऊं ,समा जाएँ जान-ओ-जिस्म में ये
ऐसे गायब हों कभी घर नहीं आये जैसे !
कैसी चाहत के ये दस्तूर निभाते रहते
आग खुद ही लगाए कोई बुझाए जैसे !jo
जिन्दगी भर का साथ छूटे न मरते दम तक
,मेरे साए मेरी साँसों में समाये ऐसे !
3 comments:
सुन्दर रचना !!
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !!
साया साथ चलता है... दीखे न दीखे!
Bahut achhi rachna.
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