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Tuesday, March 31, 2015

वो????? निकल लिए

वो इतनी गुजारिश भी न माने निकल लिए  ।
बहते हुए पानी में नहाने निकल लिए  ।
दिल में जगाये खौफ बला चढ़ती जवानी
जलते बदन से जल न उठे दरिया में पानी
फिर भी जिगर की आग बुझाने निकल लिए ।
क्या खूब देखे पाँव निगाहें मचल उठीं
क़दमों को चूमने बढ़ीं राहें मचल उठीं
दीदार की ख्वाहिश में सयाने निकल लिए ।
मलमलसा जिस्म और ये मलमल के नहाना
घर से चले हैं जाने कैसे कर के बहाना
बिजली जवाँ दिलों पे गिराने निकल लिए ।
मस्ती में प्यासी मछलियों के जैसा तैरना
राहें भी ऊँची नीची फिसल जाये पैर ना
दिलदार जितने सबको सताने निकल लिए ।
मौसम ये मस्त गाने हवाएं लगीं ग़ज़ल
इनको बनाने वाला भी देखे तो जाए जल
हँसकर वो जमाने को नचाने निकल लिए  ।।।
वीरेन्द्र!हकीकत से बेख़बर है गुलबदन
आँखों में लगी आग निगाहों में है अगन
साँसों में जैसे आग लगाने निकल लिए  ।।


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