वे उनकी सहमी साँस की आहट के दीवाने ।
ऐसे नजर मिली कि हैं घूँघट के दीवाने ।।
वीरेन्द्र कहे दर्द कैसे दिल का आप से
चढ़ती उमर में अपनी ही करवट के दीवाने ।
पिटकर भी रहे पीटते हम मोहरे खेल में
देखे खिलाड़ी जो रहे चित पट के दीवाने ।
हमने कभी न लगने हुस्न को दी बदनज़र
बहुतों को देखा रहते हैं झंझट के दीवाने ।
मौसम की मौज खाक मज़ा मानसून का
महबूबा के नहीं है काली लट के दीवाने ।
कहते हैं इंतजार पायदान प्यार का
दहलीज के नहीं रहे हट हट के दीवाने ।।
वृन्दावन ! आसवन भक्ति का , नवरस नस-नस मनभावन / वर दें आप, ताप मिट जाएँ , रस बरसे पग-पग पावन / व्यंजन-स्वर परसें मनभावन , नव रस का बरसे सावन / वंदन! वचन सुधा रस चाहे , प्रिय आओ इस वृन्दावन /
Tuesday, March 31, 2015
चढ़ती उमर में
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