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Tuesday, March 31, 2015

माँ

वह माँ पिलाए दूध देके खून जो पाले ।
घुटकर अंधेरों में भी दे बच्चों को उजाले ।
बेशर्म बेटी बेटे वो माँ जिनकी जीते जी
मरती हो भूँख से न मिलें चार निवाले ।।

काँटों में सोये गोद में जो लाल सुलाये।
बाहों में भर ले चूमे झूमे झूले झुलाये
पापी पिशाच से बड़ा वो आदमी औरत
जो जीते जागते भी अपनी माँ  को रुलाये ।

यह ज़िन्दगी मिली जो बुनियाद तुम्हारी ।
तन्हाइयों में रोज आये याद तुम्हारी   ।
कब सोये चैन से गयी है दूर जबसे माँ -
ममता की प्यासी ही रही औलाद तुम्हारी ।।

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