वक़्त हो थोड़ा अगर कुछ
पास आकर देखिये ।
दर्द शायर दिल का लब से
गुनगुनाकर देखिये ।
गुलशनों जैसी खिलेंगी
दर्द ए दिल की बस्तियाँ
शर्त इतनी ही कभी तो
मुस्कुराकर देखिये ।।
जख्म का मरहम मिलेगा
दिलजलों की बज्म में
दो कदम दरवाजा ए दिल
तक बढ़ाकर देखिये ।
दुम दबाकर दर्द दिल से
दूर भागे किस कदर
दिल से दिल का दर्द
होंठों पर बसाकर देखिये ।
हौसला हर उम्र को
खुलकर सजाने का मिले
आइना आँखों को दम भर
तो बनाकर देखिये ।
दिल को हासिल हो तसल्ली
दूर भी दिल्ली कहाँ
देखिये आकर अगर दम
हो तो जाकर देखिये ।
बेकरारी दो निगाहों में बढे
कब किस कदर
सामने आकर कभी
पर्दा हटाकर देखिये ।।
वृन्दावन ! आसवन भक्ति का , नवरस नस-नस मनभावन / वर दें आप, ताप मिट जाएँ , रस बरसे पग-पग पावन / व्यंजन-स्वर परसें मनभावन , नव रस का बरसे सावन / वंदन! वचन सुधा रस चाहे , प्रिय आओ इस वृन्दावन /
Sunday, April 5, 2015
वक़्त हो थोड़ा
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