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Sunday, April 5, 2015

वक़्त हो थोड़ा

वक़्त हो थोड़ा अगर कुछ
पास आकर देखिये ।
दर्द शायर दिल का लब से
गुनगुनाकर देखिये ।
गुलशनों जैसी खिलेंगी
दर्द ए दिल की बस्तियाँ
शर्त इतनी ही कभी तो
मुस्कुराकर देखिये ।।
जख्म का मरहम मिलेगा
दिलजलों की बज्म में
दो कदम दरवाजा ए दिल
तक बढ़ाकर देखिये ।
दुम दबाकर दर्द दिल से 
दूर भागे किस कदर 
दिल से दिल का दर्द 
होंठों पर बसाकर देखिये ।
हौसला हर उम्र को 
खुलकर सजाने का मिले
आइना आँखों को दम भर
तो बनाकर देखिये ।
दिल को हासिल हो तसल्ली 
दूर भी दिल्ली कहाँ
देखिये आकर अगर दम
हो तो जाकर देखिये ।
बेकरारी दो निगाहों में बढे 
कब किस कदर
सामने आकर कभी 
पर्दा हटाकर देखिये  ।।

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