व्यर्थ सच आश्वासनों के ब्यूह में यह युद्ध प्यारे ।
सत्य सत्कर्तब्य का पथ हो गया अवरुद्ध प्यारे ।
वह समयआयाकिजीना व्यर्थ बनकर बुद्ध प्यारे । कर्म निष्फल रह न जावें पंथ चुन लो शुद्ध प्यारे ।
कर्म पथ पर तोड़ती दम आहटों -चुप मत रहो ।।
कह रही जलधार हे गुमसुम तटों-चुप मत रहो ।।
सत्य यह मालिन्य ने मन के सदा पग पग छला है सत्ययह स्वातन्त्र्यनिशिदिन दासता में ही पला है
सत्य सहचरसुफलका ध्रुवसत्यनितसचहीफला है सत्य वह ही लक्ष्य पाए जो अकेला ही चला है
कह रही पथगा सुनो अक्षय वातों चुप मत रहो ।।
वस्तुतः जीवन मरण का ज्ञानही जीवन निकषहै
मृत्युनिश्चितक्योंवृथातबमृत्युभयजनमनविवशहै ?
सचअसतके हाथअपनाश्रेयध्वजकविताकलशहै
लुट रहा बचपन तुम्हारा लुट रही मुस्कान बच्चों
सत्य भारत राष्ट्र को तुमसे मिला नित मान बच्चों
सत्य पर संकोच के ऐ घूंघटों - चुप मत रहो ।।।
वृन्दावन ! आसवन भक्ति का , नवरस नस-नस मनभावन / वर दें आप, ताप मिट जाएँ , रस बरसे पग-पग पावन / व्यंजन-स्वर परसें मनभावन , नव रस का बरसे सावन / वंदन! वचन सुधा रस चाहे , प्रिय आओ इस वृन्दावन /
Sunday, April 5, 2015
चुप मत रहो
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