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Sunday, April 5, 2015

वो हसीं यादों के लश्कर


दर्द के आँख ने कितनेही समन्दर देखे ।
इश्क में होते फ़ना ऐसे कलन्दर देखे  ।
लूटकर एक रोज मौत के हाथों लुटते
यहाँ से खाली हाथ जाते सिकन्दर देखे ।

 वो हँसी  यादों के लश्कर शाम से आने लगे 
या ख़ुदा पैग़ाम दिल के नाम से आने लगे  ।।
कैसे हो मुश्किल हिफ़ाजत
दिल की दिलवर रात भर -
नींद के दुश्मन ! बड़े आराम से आने  लगे  ।।
खाक़ होंगे गुल न क्यों गुलशन बहार ए दौर में
बागबाँ खुद ही नज़र गुलफाम से आने लगे ।
वो जिन्हों ने इक नज़र देखा न हरगिज राह में
अब दिलएदहलीज तक कुछ काम से आने लगे
आशिक़ी के दर्द का आग़ाज जिनकी फितरतें
आज साज ए साँस के अंजाम से आने लगे  ।
कोशिशें जब कीं अजब ढाए तलब ने जब ग़ज़ब
जो न आये तब वो लैब तक जाम से आने लगे ।

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