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Sunday, April 5, 2015

पिला दे

आब ए हयात तल्खियों में लब की मिला दे ।
आकर कोई मदहोश निगाहों से पिला दे  ।।
दीवानगी की हद से गुजरती हों अदाएं
लहरायें दर ए दौस वो जुल्फों की घटायें
तन्हाइयों की संग की बुनियाद हिला  दे  ।।
कमतर तो हो अहसास की परछाइयों का ग़म
देखे तो दौर ए सब्र भी अंगडाईयो का दम 
साँसों के सदके आहों से शिकवा न सिला दे ।।
आहों की बाहों सांस की शहनाइयां लुटें
बाकी जो सब्ज ओ बाग़ की रानाइयां लूटें
शिद्दत से लुत्फ़ ओ इश्क के फिर फूल खिला दे।
भटके हैं दर ब दर यूँ की हासिल हो आसमां
बुजदिल ये दिल हो लाख अभी तक रहा जवाँ
तहजीब से लजीज वो कुदरत का किला दे ।
इक रात में शामिल ये सारी कायनात हो
आब ए हयात पीते गुज़रती हयात हो
धड़कन सुने भी फिर भी न धड़कन से गिला दे ।

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