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Sunday, April 5, 2015

देखते और दर्पण रहे हम अगर ???????

देखते और दर्पण रहे हम अगर
देखते रूप ढल जायेगी चाँदनी ।
हार किरणों के जगमग सजा देह पर
भोर आकर निगल जायेगी चाँदनी ।
तेज रफ़्तार इतनी चले जिन्दगी
सांस या प्यास का क्या ठिकाना प्रिये ?
टूटकर कांच जैसा बिखर जाएगा
मत लगा चितवनों से निशाना प्रिये ।
कब बदल जाए भी बदलियों की नज़र
यह चमक लाये आये न कल चाँदनी ।
दृष्टि में नेह के मेघ उमड़े न यदि
व्यर्थ कितना उनींदे नयन आँज लो
तन का तिल तिल महकने लगेगी सुछवि
अंग पर प्यार का किरकिरा राँज लो
भाँज लो एक होने का मन से हुनर
हाथ !आयी , न जाये  निकल  चाँदनी ।

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